Saturday, November 19, 2016

मैत्री-अंटार्कटिक में गणतन्त्र दिवस - एक अविस्मरणीय अनुभव


26 जनवरी 2016, एक महत्वपूर्ण दिवस। भारत का गणतन्त्र दिवस। और मैं थी अंटार्कटिका में, मैत्री स्टेशन पर। उस दिन रूस स्टेशन से, व्हाइट डेसर्ट से और नोवो रनवे से लोग यह दिन मनाने आते हैं। मैंने तिरंगे के रंग का ड्रेस पहना। ठंड होने के बावजूद स्वेटर नहीं पहना जिसका खामियाजा तीन दिन तक भुगतना पड़ा जब कमर और पीठ अकड़ गयी। उस दिन मैंने एक कविता लिखी और सबको पढ़ कर सुनाई। 

मेरी कविता 
जन मन गा तू, जन मन गा
झण्डा फहरा के जन मन गा
मैत्री के स्टेशन पर सब मिल,
हाथ उठा कर जन मन गा।

भारत से हम दूर रहे, चुभती हवा से बातें करें,
बर्फ न टोके, ठंड न रोके, सपनों को हम सजाते चले
मौज भी है और काम कई, स्टेशन में आराम कहाँ 
संगी, साथी सब मिल कर,  जन मन गा तू, जन मन गा

कंधों से यहाँ कंधे मिले, कदम तुम्हारे, मेरे संग चले,
चुनौती चाहे कैसी भी हो, तूफा से लड़ने साथ चले
साल भर का सामान ला, कारवां को लेकर शेल्फ जा
साँसों की झंकार को बढ़ा कर, जन मन गा अब, जन मन गा

उम्र की यहाँ परवाह नहींनामुमकिन क्या पता ही नहीं,
उजाला हो या अँधियारा, सब के दिल में आस नयी
रिपब्लिक डे, मिड विंटर डे, सब तू सबके साथ मना
मैत्री के स्टेशन पर तू आज, अंटार्कटिका में जन मन गा



मैं और अनूप, मेरा सहकर्मी 
सभी गणमान्य अतिथियों के साथ 
पूरा ग्रुप, मैत्री की सीढ़ियों पर 
कविता पढ़ते हुये 





एक मुस्कराहट भरा क्षण 






एक और भाव 














अतिथियों के साथ 

















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